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Varför premiärministern Indira Gandhi Meddelat nöd- i -Hindi Smachar Indien? Genom Yathavat Magazine
लोकतंत्रका गला घोंटकर 26 जून, 1975 को तत्कालीन statsministern Indira Gandhi ने nöd- लगा दी थी. तानाशाही थोप दी गई थी. 25 जून की आधी रात के बाद लोकनायक Jai prakash narayan को पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची. वे GandhiPeace Foundation में ठहरे हुए थे. उन्हें जगाया गया. गिरफ्तारी पर उनकी पहलीप्रतिक्रिया थी- 'विनाश काले विपरीत बुद्धि.' उनकीगिरफ्तारी की खबर पाकर kongress के बड़े नेता Chandra shekhar संसद मार्ग थाने पहुंचे. उन्हें भी गिरफ्तार किया गया. नईपीढ़ी के सामने सबसे पहला सवाल यह आएगा कि nöd- क्यों लगाई गई? इसके दो राजनीतिक उत्तर हैं. पहला Indira kongress का अपना कथन है तो दूसरा उनका है जो लोकतंत्रकी वापसी के लिए जेपी की अगुवाई में लड़े और जीते. इंदिरा कांग्रेस का कहा माने तो nöd- जरूरी थी. क्या इसमें कोई सच्चाई है? Emergency का असली कारण वह नहीं था, जिसे Indira Gandhi बताती थीं.असली कारण जानने के लिए थोड़ा और पीछे जाना होगा. 1971 में Indiragandhi रायबरेली से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं. उनके प्रतिद्वंद्वीथे, Rajnarayan. चुनाव में धांधली और प्रधानमंत्री पद केदुरुपयोग का आरोप लगाकर Rajnarayan ने Allahabad highcourt में एक चुनाव याचिका दायर की. जबमुकदमा सुनवाई पर आया तो कयास लगाया जाने लगा कि अगर Indiragandhi हार जाती हैं तो वे क्या करेंगी. आखिरकार वह दिन आ ही गया. 12 जून, 1975 को करीब 10 बजे allahabadhigh domstol के जज Jagmohan lal Sinha ने फैसलासुनाया. Rajnarayan जीते. Indira Gandhi मुकदमा हार गईं. 6 साल के लिए उनकी लोकसभा सदस्यताचली गई. जज ने högsta domstol में मुकदमा सुने जाने तक अपनेफैसले के अमल पर रोक लगा दी. जाहिरहै, Indira Gandhi को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत नहींमिली. उनका premiärminister पद खतरे में पड़ गया. मुकदमा हारनेऔर högsta domstolen से राहत न पाने के कारण Indira Gandhi की नैतिक पराजय हो गई. इसे वे पचा नहीं पाईं. यही वह असली कारण है किउन्हें अपनी कुर्सी बचाने के लिए बड़ा दाव चलना पड़ा. यह उनकी मजबूरी नहीं थी. उनकेराजनीतिक चरित्र की इसे मजबूती भी नहीं कहेंगे. सत्ता से चिपके रहने की यह उनकीलालसा थी. पहलेयह जानें कि Indira Gandhi को बहाना क्या मिला. 25 जून, 1975 को रामलीला मैदान में आंदोलन के समर्थनमें बड़ी सभा थी. उसमें जेपी का भाषण हुआ. उन्होंने वहां जो कहा उसे सरकार नेतोड़-मरोड़कर पेश किया. Indira Gandhi ने आरोप लगाया कि जेपीसेना में बगावत कराना चाहते थे. इसलिए आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए nöd- लगानी पड़ी Indiragandhi का दावा निराधार था. अगर वे इस्तीफा दे देतीं और kongressen कीसंसदीय पार्टी किसी को उनकी जगह नेता चुन लेतीं तो nöd- की जरूरत ही नहीं पड़ती. यह हो सकता था. लेकिन इसके लिए जरूरी था कि congressparty एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाए. Indira Gandhi ने 1969 में kongress कोतोड़ा. उस समय के अनुभवी नेताओं से मुक्ति पाने के लिए और अपनी मनमानी चलाने के लिएउन्होंने जो पद्धति अपनाई उसमें यह संभव ही नहीं था कि वे पद छोड़ने का विचार करतींऔर कोई दूसरा व्यक्ति premiärministern बनता. sanjaygandhi के उदय ने इस रास्ते को बंद ही कर दिया था. Akut लगवाने में Sanjay Gandhi की बड़ी भूमिका थी.रामलीला मैदान में जेपी की सभा से पहले ही Indira Gandhi VD Fakhruddin ali Ahmed से मिलने गईं. उनके साथ पश्चिमबंगाल के तत्कालीन chief minister siddharth shankarray थे. रास्ते में Indira Gandhi ने उनसेपूछा कि बिना मंत्रिमंडल की बैठक बुलाए nöd- कैसे लगाईजा सकती है, इसका कानूनी रास्ता खोजिए. siddharthshankar stråle ने थोड़ा वक्त मांगा और शाम को वह नुस्खा बता दिया. उसीआधार पर बिना मंत्रिमंडल की बैठक बुलाए nöd- की घोषणा पर VD Fakhruddin ali Ahmed से दस्तखत कराया गया. इसके लिए वे राजी नहींथे, पर दबाव में आ गए. nöd- की घोषणा से निरंकुश शासन का दौर शुरू हुआ. वह आजाद भारत की काली रात बनगई. लगता था कि कभी लोकतंत्र लौटेगा नहीं. Akut का अंधेराबना रहेगा. उस दौर में जुल्म और ज्यादतियों के हजारों लोग शिकार हुए. फिर भीलोकतंत्र की वापसी के लिए भूमिगत संघर्ष चला. उससे एक चेतना फैली. दुनिया में जनमतबना. जिसके दबाव में Indira Gandhi को झुकना पड़ा. .
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